Eraser!

Mirror!

मन का राम। मन का रावण।

मन का कुम्भकरण जाग रहा है,
और राम कोने में सो रहा है।

शु…श..
पर राम को मत उठाना।

अगर राम को उठाओगे तो वो धर्म की बात छेड़ेगा,
क्या है सही, क्या है गलत कच्चा चिट्ठा खोलेगा।
वो धर्म और कर्म को तराजू में रख तोलेगा,
फिर धर्म नहीं आसान ये बात तुम्हारा मन दबे दबे बोलेगा।

इसी मौके पर रावण दुनियादारी के तीर छोड़ेगा।
अज्ञान और अहंकार छाएगा, विवेक मुँह मोड़ेगा।
तर्क और कुतर्क में तुम फिर से गुम हो जाओगे।
रावण को मजबूरी, कलयुग, लोकाचार या कोई और नाम से अपनाओगे।

राम तो भगवान है- छोड़ भी नहीं सकते,
आखिर लोगो के सामने धर्म तोड़ भी नही सकते,
ये ख्याल मन में आएगा, तुम्हें मंदिर ले जाएगा ।

वहां तुम फुल- माला -प्रसाद चढ़ाओगे।
राम को समझाओगे, बहलाओगे, फुसलाओगे।
उसे अपनी मजबूरी की कहानी, दुख की लोरी सुनाओगे।
और मन के किसी गहरे अंधेरे कोने में ले जाकर
राम को फिर से सुलाओगे।

मत उठाना राम को, उठाकर क्या पाओगे?
जहाँ से शुरू किया था, ठीक वहीं खुद को पाओगे।